Table of Contents
Quality Service Guarantee Or Painting Free
Get a rental agreement with doorstep delivery
Find the BEST deals and get unbelievable DISCOUNTS directly from builders!
5-Star rated painters, premium paints and services at the BEST PRICES!
Loved what you read? Share it with others!
Submit the Form to Unlock the Best Deals Today
Check Your Eligibility Instantly
Experience The NoBrokerHood Difference!
Set up a demo for the entire community
Tenant Super Relax Plan
Enjoy Hassle-Free Renting
Full RM + FRM support
Instant alerts & premium filters
Rent negotiation & relocation helpSubmit the Form to Unlock the Best Deals Today
क्या आप लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट और रेंट एग्रीमेंट के बीच का फर्क जानते हैं?
Table of Contents
प्रॉपर्टी का मालिकाना हक
एक लीव और लाइसेंस एग्रीमेंट में, किरायेदार प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक नहीं जता सकता क्योंकि यह एग्रीमेंट भारत के रेंट कंट्रोल एक्ट (किराया नियंत्रण अधिनियम) के तहत नहीं आता है। इस एग्रीमेंट में मकान मालिक किरायेदार को प्रॉपर्टी का लाइसेंस देता है और प्रॉपर्टी छोड़ देता हैं। उदाहरण के लिए आप कोई ज़ूम कार या युलु बाइक किराये पर लेते हैं, तो आप उसका इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन यह दावा नहीं कर सकते की आप उसके मालिक हैं। बात जब रेंट एग्रीमेंट की आती है तो किरायेदार एक ही जगह पर कम से कम 10 सालों तक रहने के बाद उस प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक जता सकते हैं। वे रेंट कंट्रोल एक्ट ऑफ इंडिया के तहत यह दावा कर सकते हैं। इस तरह के मामले में मकान मालिक के पास घर खाली करवाने या किराया बढ़ाने के बहुत कम विकल्प रह जाते हैं।
कानूनी पहलू
एक लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट को भारत मे कहीं भी कानूनी पते के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह एक कानूनी दस्तावेज़ होता है जिसमें लाइसेंस कर्ता सुरक्षा राशि, किराये की राशि, रहने की अवधि और प्रॉपर्टी का इस्तेमाल करने के लिए किये गए दूसरे भुगतानों के तहत बंध जाता हैं। एक बार जब दोनों पक्ष इस एग्रीमेंट पर साइन कर देते हैं तो इन तथ्यों को बदला नहीं जा सकता है। किरायेदार के लिए यह बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह एग्रीमेंट उसके हितों की रक्षा करता हैं और घर मे रहने की सभी शर्तो को भी स्पष्ट करता है। एक रजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट से किरायेदार को प्रॉपर्टी पर कुछ हक भी मिलते हैं। मुंबई में अभी भी ऐसे बहुत से किरायेदार हैं जो हर महीने सिर्फ 15 रुपये का किराया देते हैं और रेंट एग्रीमेंट की वजह से वहाँ रह रहे हैं। रेंट एग्रीमेंट के तहत, जब तक वे लोग सही समय पर किराया देते रहेंगे, उन्हें निकाला नहीं जा सकता है। इस तरह के हालातों से बचने के लिए सिर्फ 11 महीनों का रेंट एग्रीमेंट तैयार करवाना अच्छा रहता है। 11 महीनों का रेंट एग्रीमेंट रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत नहीं आता है। 11 महीनों का लीव और लाइसेंस एग्रीमेंट बनाना सही रहता है। 11 महीनों के बाद, अगले 11 महीनों के लिए एग्रीमेंट को फिर से बनाना चाहिए। एग्रीमेंट को 11 महीनों का ही रखें।
इंडियन ईज़मेंट एक्ट और रेंट कंट्रोल एक्ट (भारतीय सुखाचार अधिनियम और किराया नियंत्रण अधिनियम)
लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट इंडियन ईज़मेंट एक्ट 1882 के तहत आता है। इसमें कहा गया है कि मकान मालिक कुछ सुविधाओं के साथ प्रॉपर्टी को उसी रूप में इस्तेमाल करने के लिए लाइसेंसधारी के पास छोड़ कर एक निश्चित समय के लिये छुट्टी पर चला जाता है। जब छुट्टी खत्म होती है तो मालिक वापस आ जाता है और लाइसेंसधारी चला जाता है। जब वह जाता है तो उसकी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह प्रॉपर्टी को उसी हालत में छोड़ कर जाए, जिस हालत में उसे दिया गया था। वह कुछ भी बड़ा बदलाव नहीं कर सकता और जो भी प्रॉपर्टी के साथ मिला सब वैसा ही होना चाहिए क्योंकि यह एक अस्थायी एग्रीमेंट होता है। प्रॉपर्टी को सिर्फ उन्हीं गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो मूल रूप से एग्रीमेंट में लिखित हैं। भुगतान के लिए, किरायेदार शुरुआत में ही एक बड़ी राशि का भुगतान कर देता है और इसके बाद कोई मासिक किराया नहीं दिया जाता है। रेंट कंट्रोल एक्ट में किरायेदार कमर्शियल या रिहायशी इस्तेमाल के लिए मकान मालिक से प्रॉपर्टी किराये पर लेता है, किराये की एक निश्चित राशि का भुगतान किया जाता है। कानूनी रूप से जब तक किराया दिया जा रहा हैं तब तक मकान मालिक किरायेदार को नहीं निकाल सकता है। किरायेदार एक जमा राशि का भुगतान करता है और जो एग्रीमेंट के हिसाब से मासिक किराया तय हुआ है वो देता है।किरायेदार और मकान मालिक के अधिकार
अगर आप देखें तो, क्योंकि एक रेंट एग्रीमेंट, रेंट कंट्रोल कानून के तहत आता है इसलिए यह किरायेदार को ज़्यादा हक देता हैं और ज़्यादा उसी के पक्ष में होता है। ये मकान मालिक को ज़्यादा किराया वसूलने से रोकते हैं, किरायेदार को प्रॉपर्टी पर ज़्यादा मालिकाना हक देते हैं। एक लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट मकान मालिक के पक्ष में ज़्यादा होता है क्योंकि इससे किरायेदार किसी भी हालत में मकान मालिक की प्रॉपर्टी को नहीं हथिया सकता है। प्रॉपर्टी में कोई बड़े बदलाव भी नहीं किये जा सकते हैं। अगर आपको रेंटल एग्रीमेंट या लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट के विषय मे किसी तरह की मदद की ज़रूरत हैं, तो इसे NoBroker के एक्सपर्ट पर छोड़ दें। हम यहाँ आपकी कागज़ी कार्यवाही को आसान और तनाव-मुक्त बनाते हैं। ज़्यादा जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।Loved what you read? Share it with others!
Most Viewed Articles
रेनवॉटर हार्वेस्टिंग क्या है और आपको इसकी ज़रुरत क्यों है?
January 31, 2025
38911+ views
भारत में घर किराए पर देने के लिए 5 आसान स्टेप्स (कदम)
January 31, 2025
34515+ views
प्रॉपर्टी खरीदने और बेचने के लिए ज़रुरी कानूनी कागज़ात / डॉक्युमेंट्स
January 31, 2025
23676+ views
पुणे के आस-पास 100 किलोमीटर के भीतर घूमने के लिए 7 आकर्षक और खूबसूरत जगहें
January 31, 2025
21530+ views
क्या आप लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट और रेंट एग्रीमेंट के बीच का फर्क जानते हैं?
January 31, 2025
18288+ views
Recent blogs in
2019 में कब करे गृह प्रवेश, कौन से महीने में कौन सा दिन रहेगा आपके लिए शुभ
January 31, 2025 by Sameer Chaudhary
किराए के घरों के लिए तेज़ और आसान वास्तु उपाय
January 31, 2025 by NoBroker.com
January 31, 2025 by NoBroker.com
घर पर अच्छा वाई-फ़ाई कैसे प्राप्त करें?
January 31, 2025 by NoBroker.com
मकान मालिक से न पूछे जाने वाले 5 महत्वपूर्ण सवाल जो आपको जानने चाहिए
January 31, 2025 by NoBroker.com
Join the conversation!