अगर आप किसी किराये के घर की तलाश में हैं या किराये के घर मे रह रहे हैं तो आपने लीव एंड लाइसेंस और रेंट एग्रीमेंट (किरायानामा) जैसे शब्द सुने होंगे। बहुत से लोग सोचते हैं कि ये दोनों एक ही चीज़ हैं लेकिन वास्तव में, ये दोनों बिल्कुल अलग डॉक्यूमेंट हैं और इनके बीच कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं। हालांकि, आखिरकार दोनों का मकसद मकान मालिक और किरायेदार के हितों की रक्षा करना ही है। दोनो में अंतर–
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प्रॉपर्टी का मालिकाना हक
एक लीव और लाइसेंस एग्रीमेंट में, किरायेदार प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक नहीं जता सकता क्योंकि यह एग्रीमेंट भारत के रेंट कंट्रोल एक्ट (किराया नियंत्रण अधिनियम) के तहत नहीं आता है। इस एग्रीमेंट में मकान मालिक किरायेदार को प्रॉपर्टी का लाइसेंस देता है और प्रॉपर्टी छोड़ देता हैं। उदाहरण के लिए आप कोई ज़ूम कार या युलु बाइक किराये पर लेते हैं, तो आप उसका इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन यह दावा नहीं कर सकते की आप उसके मालिक हैं।
बात जब रेंट एग्रीमेंट की आती है तो किरायेदार एक ही जगह पर कम से कम 10 सालों तक रहने के बाद उस प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक जता सकते हैं। वे रेंट कंट्रोल एक्ट ऑफ इंडिया के तहत यह दावा कर सकते हैं। इस तरह के मामले में मकान मालिक के पास घर खाली करवाने या किराया बढ़ाने के बहुत कम विकल्प रह जाते हैं।
कानूनी पहलू
एक लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट को भारत मे कहीं भी कानूनी पते के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह एक कानूनी दस्तावेज़ होता है जिसमें लाइसेंस कर्ता सुरक्षा राशि, किराये की राशि, रहने की अवधि और प्रॉपर्टी का इस्तेमाल करने के लिए किये गए दूसरे भुगतानों के तहत बंध जाता हैं। एक बार जब दोनों पक्ष इस एग्रीमेंट पर साइन कर देते हैं तो इन तथ्यों को बदला नहीं जा सकता है। किरायेदार के लिए यह बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह एग्रीमेंट उसके हितों की रक्षा करता हैं और घर मे रहने की सभी शर्तो को भी स्पष्ट करता है। एक रजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट से किरायेदार को प्रॉपर्टी पर कुछ हक भी मिलते हैं। मुंबई में अभी भी ऐसे बहुत से किरायेदार हैं जो हर महीने सिर्फ 15 रुपये का किराया देते हैं और रेंट एग्रीमेंट की वजह से वहाँ रह रहे हैं। रेंट एग्रीमेंट के तहत, जब तक वे लोग सही समय पर किराया देते रहेंगे, उन्हें निकाला नहीं जा सकता है।
इस तरह के हालातों से बचने के लिए सिर्फ 11 महीनों का रेंट एग्रीमेंट तैयार करवाना अच्छा रहता है। 11 महीनों का रेंट एग्रीमेंट रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत नहीं आता है।
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11 महीनों का लीव और लाइसेंस एग्रीमेंट बनाना सही रहता है। 11 महीनों के बाद, अगले 11 महीनों के लिए एग्रीमेंट को फिर से बनाना चाहिए। एग्रीमेंट को 11 महीनों का ही रखें।
इंडियन ईज़मेंट एक्ट और रेंट कंट्रोल एक्ट (भारतीय सुखाचार अधिनियम और किराया नियंत्रण अधिनियम)
लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट इंडियन ईज़मेंट एक्ट 1882 के तहत आता है। इसमें कहा गया है कि मकान मालिक कुछ सुविधाओं के साथ प्रॉपर्टी को उसी रूप में इस्तेमाल करने के लिए लाइसेंसधारी के पास छोड़ कर एक निश्चित समय के लिये छुट्टी पर चला जाता है। जब छुट्टी खत्म होती है तो मालिक वापस आ जाता है और लाइसेंसधारी चला जाता है। जब वह जाता है तो उसकी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह प्रॉपर्टी को उसी हालत में छोड़ कर जाए, जिस हालत में उसे दिया गया था। वह कुछ भी बड़ा बदलाव नहीं कर सकता और जो भी प्रॉपर्टी के साथ मिला सब वैसा ही होना चाहिए क्योंकि यह एक अस्थायी एग्रीमेंट होता है। प्रॉपर्टी को सिर्फ उन्हीं गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो मूल रूप से एग्रीमेंट में लिखित हैं। भुगतान के लिए, किरायेदार शुरुआत में ही एक बड़ी राशि का भुगतान कर देता है और इसके बाद कोई मासिक किराया नहीं दिया जाता है।
रेंट कंट्रोल एक्ट में किरायेदार कमर्शियल या रिहायशी इस्तेमाल के लिए मकान मालिक से प्रॉपर्टी किराये पर लेता है, किराये की एक निश्चित राशि का भुगतान किया जाता है। कानूनी रूप से जब तक किराया दिया जा रहा हैं तब तक मकान मालिक किरायेदार को नहीं निकाल सकता है। किरायेदार एक जमा राशि का भुगतान करता है और जो एग्रीमेंट के हिसाब से मासिक किराया तय हुआ है वो देता है।
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किरायेदार और मकान मालिक के अधिकार
अगर आप देखें तो, क्योंकि एक रेंट एग्रीमेंट, रेंट कंट्रोल कानून के तहत आता है इसलिए यह किरायेदार को ज़्यादा हक देता हैं और ज़्यादा उसी के पक्ष में होता है। ये मकान मालिक को ज़्यादा किराया वसूलने से रोकते हैं, किरायेदार को प्रॉपर्टी पर ज़्यादा मालिकाना हक देते हैं।
एक लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट मकान मालिक के पक्ष में ज़्यादा होता है क्योंकि इससे किरायेदार किसी भी हालत में मकान मालिक की प्रॉपर्टी को नहीं हथिया सकता है। प्रॉपर्टी में कोई बड़े बदलाव भी नहीं किये जा सकते हैं।
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